नयी दिल्ली । केंद्रीय इस्पात सचिव एन एन सिन्हा की अध्यक्षता में आयोजित एक बैठक में अगले 10 वर्षों के लिए लौह और इस्पात क्षेत्र के लिए व्यापक अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) का खाका और कार्य योजना तैयार करने के लिए विचार मंथन किया गया। इसका उद्योग के विकास को पारिस्थितिकी के अधिक अनुकूल बनाना है। बैठक में ऐसा अनुसंधान एवं विकास की पहलों को एक साझा मंच पर लाने की पहल की जरूरत पर बल दिया गया।
मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार इस्पात उद्योग, शिक्षा, अनुसंधान प्रयोगशालाओं, डिजाइन और इंजीनियरिंग कंपनियों के हितधारक और अन्य संबंधित मंत्रालयों/विभागों के प्रतिनिधियों की इस बैठक में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन जैसी एजेंसियों के लोग भी शामिल थे। चर्चाओं का संचालन डॉ. इंद्रनील चट्टोराज, पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (सीएसआईआर-एनएमएल) जमशेदपुर और इस्पात मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव रुचिका चौधरी गोविल ने किया। मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार अनुसंधान करने के लिए पहचाने गए प्रमुख क्षेत्रों में लौह अयस्क और कोयले के बेनेफिकेशन, कार्बन कैप्चर और उपयोग, इस्पात उद्योग के कचरे का उपयोग जैसे स्टील स्लैग, डीकार्बोनाइजेशन तकनीकें, कोक/ कोयले के स्थानापन्न के रूप में बायो-चार (कोयले) का उपयोग जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इसमें माध्यमिक इस्पात क्षेत्र के लिए विशिष्ट चुनौतियों और मुद्दों की भी पहचाना की गयी है।
बैठक में लौह और इस्पात क्षेत्र की अनुसंधान एवं विकास आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समन्वित और सहयोगी अनुसंधान करने के लिए उद्योग, अनुसंधान प्रयोगशालाओं और अकादमिक इंटरफेस को मजबूत करने के तरीकों और साधनों की पहचान करने के लिए विचार-विमर्श किया गया। बयान में कहा गया है कि पहचाने गए अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों और उनकी लागत के आधार पर, इस्पात मंत्रालय वित्त पोषण के स्रोतों के साथ-साथ पहलों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र की पहचान/सुविधा प्रदान करेगा।