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स्लम बस्तियों में भ्रांतियां के प्रति टीबी चैंपियन हिमानी कर रहीं जागरुक

by admin

-टीबी के 100 मरीजों की काउंसलिंग और 30 संभावितों की करवाएं हैं जांच

दुर्ग : टीबी को मात दे चुके मरीज अब टीबी चैंपियन बनकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। स्वस्थ हुए मरीजों में से शिक्षित व कुशल मरीजों को चिन्हित कर स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें टीबी चैंपियन की उपाधि दी है। यह चैंपियन “ टीबी हारेगा देश जीतेगा ”अभियान से जुड़कर शहरी स्लम बस्तियों में जाकर टीबी के लक्षण के बारे में बता रहे हैं। जिला क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम अधिकारी डॉ अनिल कुमार शुक्ला ने बताया समाज में क्षय रोग के संबंध में जनमानस को जागरूक करने में यह बहुत उपयोगी साबित हो रहे हैं। टीबी चैंपियन अपनी आप बीती और अनुभवों को लोगों तक पहुंचा रही हैं। छत्तीसगढ़ ने राज्य को 2023 तक टी बी मुक्त बनाने का संकल्प लिया है जबकि केंद्र सरकार ने भारत को टी बी से 2025 तक मुक्ति दिलाने की ओर काम कर रही है।

भिलाई निवासी 20 वर्षिया टीबी चैंपियन हिमानी वर्मा बीजेएमसी थर्ड ईयर की छात्रा है। वह खुद की पढ़ाई करने के साथ ही संक्रामक बीमारियों के बारे में स्लम बस्तियों में जागरूकता लाने जुटी हुई हैं। अब तक दो सालों में 100 मरीजों का काउंसलिंगऔर 30 से अधिक टीबी के संभावित मरीजों को जांच के लिए प्रेरित कर चुकी है। इस वर्ष 7 जनवरी से सघन टीबी खोज अभियान दस्तक-2021 से भिलाई इलाके के शांति नगर, वृद्ध आश्रम, गोकुल नगर, लक्ष्मी नगर, शास्त्री चौक, कैम्प-2, बापू नगर खुर्शीपार, श्याम नगर, सूर्या नगर, ओडिया बस्ती, फलमंडी व सेक्टर-2 के स्लम बस्तियों में 336 टीबी के संभावित मरीजों को जांच के लिए भेजा गया है।

पूरी दवाई लेकर 9 महीने में दी टीबी को मात –

हिमानी अपना अनुभव साझा कर बताती हैं तीन साल पूर्व वर्ष 2017 उसे अचानक कमजोरी लगने के बाद तेज बुखार और सांस लेने में काफी दिक्कतें आ रही थी। गले में सूजन यानी गठान होने लगा जिसका टेस्ट कराने पर टीबी रोग का पॉजिटिव बताया गया। नजदीक के अस्पताल में इलाज कराने के बाद भी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ| दिनोंदिन भूख नहीं लगने से वजन भी कम होने लगा। डॉक्टरों की सलाह के बाद एम्स रायपुर रेफर किया गया जहां 15 दिनों तक भर्ती रखा गया। जांच के बाद एम्स में टीबी की दवाई लेनी शुरु हुई। दवाई लेने से सेहत में सुधार होने लगा तब अस्पताल से डिस्चार्ज के बाद शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुर्शीपार से 9 महीने तक दवा का पूरा कोर्स लिया।

टीबी को हराने में शहर के ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता दुष्यंत शर्मा का बहुत अच्छा योगदान रहा। इलाज के इन 9 महीनों के दौरान हिमानी 12 वी कक्षा में बोर्ड परीक्षा की भी चिंता सता रही थी। लेकिन समय-समय पर परामर्श के साथ शिक्षकों व परिजनों का भी भरपूर सहयोग मिलता रहा। खाली पेट 8 गोलियों की खुराक लेने से चक्कर व उल्टियां होती थी। इससे पढाई में ध्यान नहीं दे सकती थी। बावजूद इसके उन्होंने 12 वी बोर्ड की परीक्षा व टीबी रोग से जितने में कामयाब रहीं।

रीच संस्था से ट्रेनिंग लेकर टीबी की भ्रांतियां कर रहीं दूर-

हिमानी बताती हैं कि पूर्ण रुप से स्वस्थ्य होने के बाद नवंबर-2018 में सामाजिक संस्था रीच(REACH) द्वारा आयोजित टीबी कार्यशाला में शामिल होने का अवसर मिला। कार्यशाला में टीबी को हराने वाले योद्वा शामिल हुए। इन्हें समाज में टीबी के प्रति फैली भ्रांतियों से अवगत कराया गया। इस रोग के प्रति जानकारियां मिलने के बाद टीबी से बचे लोगों की क्षमता निर्माण के लिए ट्रेनिंग देकर टीबी की उपाधी दी गई। लोगों को टीबी से बचाने (एनटीईपी) के स्टॉफ के साथ मिलकर टीबी मरीजों की काउंसलिंग का कार्य कर टीबी की दवा की पूरी खुराक नियमित लेने के लिए प्रेरित करते हैं। लोगों को मोटीवेट करते हैं कि टीबी का पूरा कोर्स करने से टीबी रोग को पूरी तरह से हराकर स्वस्थ्य जीवन व्यतित कर सकते हैं।

हिमानी अब स्थानीय मितानिन के साथ पारा में बैठक लेकर संकुल स्तरीय बैठक, वृद्वाश्रम, स्कूल, महिला समूहों सहित हाई रिक्स जोन में जाकर भी टीबी को नहीं छुपाने और खुलकर बताने की समझाइश देती हैं। हिमानी ने तत्कालीन कलेक्टर अंकित आनंद के साथ “टीबी फ्री भिलाई’’ अभियान में भी सहयोग प्रदान की थी।

टीबी छुआछूत जैसी कोई बीमारी नहीं-

हिमानी कहती है:“स्वास्थ्य विभाग के जिला क्षय रोग नियंत्रण अधिकारी डॉ. अनिल कुमार शुक्ला की ओर से अभियान को लेकर जो भी कार्य सौंपा गया है उसे उत्साहपूर्वक पूरा करती हूँ। क्षेत्र में जाकर लोगों को टीबी के बारे में जागरूक करने का दायित्व निभा रही हूं, ताकि सभी लोग टीबी की जांच और सम्पूर्ण इलाज को लेकर सतर्क रहें। टीबी कोई छूआछूत की बीमारी नहीं है। यह हवा के माध्यम से फैलता है और किसी को भी हो सकता है। टीबी का इलाज पूरी तरह संभव है। दवा की पूरी खुराक लेकर टीबी को जड़ से समाप्त कर सकते हैं।‘’ हिमानी अपनी पढ़ाई और अन्य जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए टीबी मरीजों के इलाज में सबसे आगे रहती हैं। इनकी काबिलियत और समझाने के हुनर के आगे स्वास्थ्य विभाग भी मुरीद है। इस रोग को मात दे चुके चैंपियन द्वारा सही तरीके से अपनी बात रखने से क्षय रोगियों के प्रति भेदभाव भी कम होगा।

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