नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक बेहद अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि नागरिकों को अपनी बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी की कीमत समझनी चाहिए और इसके साथ-साथ आत्म-नियंत्रण और संयम का पालन करना चाहिए। सोशल मीडिया पर बढ़ती विभाजनकारी और नफरत फैलाने वाली प्रवृत्तियों पर चिंता जताते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह सेंसरशिप नहीं चाहता, बल्कि यह चाहता है कि लोग खुद जिम्मेदारी निभाएं।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा, कोई भी नहीं चाहता कि राज्य (सरकार) ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करे। इसलिए यह जरूरी है कि लोग खुद जिम्मेदारी लें और सोशल मीडिया या अन्य मंचों पर ऐसा कुछ न कहें जो समाज में तनाव फैलाए।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं
अदालत ने नागरिकों के बीच भाईचारे की भावना बनाए रखने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि आज के दौर में जब अलगाववादी विचार तेजी से फैल रहे हैं, तब नागरिकों को बहुत सोच-समझकर बोलना चाहिए। पीठ ने कहा, हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन संविधान में इस पर पहले से ही युक्तिसंगत सीमाएं (क्रद्गड्डह्यशठ्ठड्डड्ढद्यद्ग क्रद्गह्यह्लह्म्द्बष्ह्लद्बशठ्ठह्य) लगाई गई हैं और लोगों को इन सीमाओं का पालन करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी वजाहत खान नामक एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिस पर एक हिंदू देवी के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में कई राज्यों में एफआईआर दर्ज हैं। खान ने इन सभी एफआईआर को एक साथ जोडऩे और राहत की मांग की थी।
वजाहत खान के वकील ने दलील दी कि उन्होंने पहले एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी को लेकर शिकायत की थी, जिसके जवाब में उनके पुराने ट्वीट्स को निकालकर उनके खिलाफ ही असम, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और हरियाणा में केस दर्ज करा दिए गए।
अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए वजाहत खान को गिरफ्तारी से मिली अंतरिम राहत को अगली सुनवाई तक के लिए बढ़ा दिया है। साथ ही, वकीलों से इस बड़े मुद्दे पर मदद मांगी है कि नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज में सौहार्द के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
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