नई दिल्ली । भारत के सबसे बड़े पोर्ट ऑपरेटर अदाणी पोर्ट्स ने ऑस्ट्रेलिया के नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल (हृक्तङ्गञ्ज) को वापस अपने नियंत्रण में लेकर भू-राजनीतिक और आर्थिक गलियारों में एक बड़ा रणनीतिक कदम उठाया है। 2.4 अरब अमेरिकी डॉलर का यह सौदा सीधे तौर पर नकद लेनदेन पर आधारित नहीं है, बल्कि अदाणी समूह की कंपनियों द्वारा कारमाइकल रेल और पोर्ट सिंगापुर होल्डिंग्स को 14.35 करोड़ नए शेयर जारी किए जाएंगे, जिससे प्रमोटर की हिस्सेदारी में 2.12त्न की वृद्धि होगी। यह अधिग्रहण महज एक व्यावसायिक सौदा नहीं है, बल्कि वैश्विक व्यापार परिदृश्य में भारत की बढ़ती रणनीतिक दूरदर्शिता का प्रमाण है।
ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी भाग में स्थित यह बंदरगाह भारत के लिए पश्चिम से पूर्व तक व्यापार मार्गों में प्रवेश का एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार साबित हो सकता है। इस बंदरगाह से होने वाले 90त्न कार्गो का सीधा संबंध एशियाई देशों, विशेषकर भारत और चीन से है। यह ‘पावर प्ले’ अदाणी समूह की वैश्विक विस्तार की रणनीति में पूरी तरह फिट बैठता है। बोवेन और गैलीली कोल माइंस से सीधी कनेक्टिविटी के कारण यह ऊर्जा और संसाधनों की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करता है। भविष्य में, यही टर्मिनल ग्रीन हाइड्रोजन जैसे स्वच्छ ईंधनों के निर्यात में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
आज के दौर में बंदरगाह केवल जहाजों के ठहरने की जगह नहीं रह गए हैं, बल्कि वे भू-राजनीतिक और आर्थिक शक्ति के नए केंद्र के रूप में उभरे हैं। ब्लैकरॉक जैसी वैश्विक दिग्गज कंपनियों का पनामा और अन्य महत्वपूर्ण बंदरगाहों में भारी निवेश इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बंदरगाहों पर नियंत्रण भविष्य की शक्ति का निर्धारण करेगा। अदाणी पोर्ट्स का यह कदम भारत को इसी शक्ति के केंद्र में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
गौरतलब है कि नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल पहले भी अदाणी समूह के स्वामित्व में था, जिसे 2011 में खरीदा गया था और 2013 में घरेलू विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रमोटर को हस्तांतरित कर दिया गया था। अब, जब भारत की वैश्विक ताकत कई गुना बढ़ चुकी है, कंपनी न केवल इस पोर्ट को वापस ले रही है, बल्कि रणनीतिक रूप से इसे और मजबूत कर रही है। क्षेत्रीय स्तर पर एक समझदारी भरा मूल्यांकन इस सौदे को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
इस अधिग्रहण के साथ, अदाणी पोर्ट्स के पास अब कुल 19 बंदरगाह होंगे, जिनमें इजऱाइल, श्रीलंका, तंजानिया और अब ऑस्ट्रेलिया में स्थित 4 विदेशी बंदरगाह शामिल हैं। यह भारत की उस विदेश नीति के अनुरूप है, जिसके तहत उन क्षेत्रों में निवेश किया जा रहा है जो भारतीय व्यापारिक हितों के साथ संरेखित हैं। ऑस्ट्रेलिया, जहां पहले से ही चीनी निवेश 9 अरब डॉलर से अधिक है, में भारत की मजबूत उपस्थिति न केवल एक रणनीतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करेगी, बल्कि भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा, कच्चे माल की आपूर्ति और हरित ईंधन के क्षेत्र में भारत की सक्रिय भागीदारी भी सुनिश्चित करेगी।
अदाणी पोर्ट्स का यह अधिग्रहण मात्र व्यापार की मात्रा या मुनाफे का विषय नहीं है, बल्कि यह भारत की उस महत्वाकांक्षी सोच का प्रतीक है जो अब स्थानीय सीमाओं को लांघकर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। आज भारत उन व्यापार, ऊर्जा और रणनीतिक मार्गों को मजबूत कर रहा है, जो भविष्य की दुनिया की दिशा तय करेंगे, और हर उस मार्ग पर अदाणी पोर्ट्स जैसा एक भारतीय संस्थान अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अब केवल एक ‘बाजार’ नहीं रह गया है, बल्कि एक ‘मार्गदर्शक’ की भूमिका में भी उभर रहा है।
