मजबूत आर्थिक वृद्धि और महंगाई घटने के साथ आरबीआई पर रेपो दर में कटौती का दबाव बढ़ने लगा है। केंद्रीय बैंक की ब्याज दर निर्धारण समिति के बाहरी सदस्य जयंत आर वर्मा लंबे समय से रेपो दर में कम-से-कम 0.25 फीसदी की कटौती की वकालत कर रहे हैं। अब समिति की दूसरी बाहरी सदस्य आशिमा गोयल भी इस मांग में शामिल हो गई हैं। हालांकि, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास समेत चार सदस्यों ने प्रमुख नीतिगत दर को 6.5 फीसदी पर यथावत रखने के पक्ष में मतदान किया।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के फैसले की जानकारी देते हुए कहा, महंगाई को लक्ष्य के अनुरूप होना चाहिए। खुदरा महंगाई एक बार जब चार फीसदी पर आ जाए तो इसे वहीं रहना चाहिए। हमें जब भरोसा हो जाएगा कि यह चार फीसदी पर स्थिर रहेगी और आगे नहीं बढ़ेगी, तभी हम रेपो दर में कटौती के बारे में सोचेंगे। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक दरों के मोर्चे पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।
दास ने कहा, वृद्धि और महंगाई का सफर उम्मीदों के अनुरूप आगे बढ़ रहा है। लेकिन, यह चार फीसदी की तरफ यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जो सबसे मुश्किल और पेचीदा होगा। उन्होंने अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसलों से आरबीआई के नीतिगत कदम को अलग रखे जाने पर कहा, फेड रिजर्व के ब्याज घटाने पर भी आरबीआई रेपो दर में कटौती नहीं कर सकता है। आरबीआई के अनुमानों के मुताबिक, खुदरा महंगाई दिसंबर तिमाही में 3.8 फीसदी पर आई है, लेकिन बाद में फिर से बढ़कर पांच फीसदी पर पहुंच रही है। उधर, दरों में कटौती की वकालत करने वाले दोनों सदस्यों वर्मा और गोयल की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब स्विट्जरलैंड, स्वीडन, कनाडा और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के कुछ केंद्रीय बैंक 2024 में दरों में ढील देने की शुरुआत कर चुके हैं।