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बंगाल के राज्यपाल का फरमान : राजकीय विश्वविद्यालय शिक्षा विभाग का निर्देश मानने के लिए बाध्य नहीं

by Bhupendra Sahu

कोलकाता । पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के कार्यालय द्वारा जारी ताजा अधिसूचना से राज्य विश्वविद्यालयों पर राज्य सरकार के अधिकार के स्तर को वस्तुत: शून्य पर लाने से गवर्नर हाउस और राज्य सचिवालय के बीच टकराव का एक और रास्ता खुल गया है।
अधिसूचना में साफ तौर पर कहा गया है कि सभी राज्य विश्वविद्यालयों के फैकल्टी और नॉन फैकल्टी स्टाफ पहले चांसलर और फिर वाइस चांसलर के प्रति जवाबदेह हैं। राज्यपाल स्वयं अपने पद के आधार पर सभी राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर भी होते हैं। गवर्नर हाउस की ताजा अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार राज्य विश्वविद्यालयों के अधिकारियों को निर्देश दे सकती है, लेकिन वे निर्देश विश्वविद्यालयों के अधिकारियों या कर्मचारियों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। अधिसूचना में यह भी बताया गया है कि राज्य सरकार या राज्य शिक्षा विभाग से किसी भी राज्य विश्वविद्यालय को कोई भी निर्देश तभी मान्य होगा जब उसे वाइस चांसलर द्वारा मंजूरी दे दी जाएगी।

राज्यपाल ने 1 सितंबर को घोषणा की कि वह राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में उन राज्य विश्वविद्यालयों के लिए अंतरिम वाइस चांसलर की भूमिका निभाएंगे जहां वर्तमान में कार्यात्मक प्रमुखों की कुर्सियाँ खाली हैं। इस फैसले की राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी। हालांकि, विपक्षी भाजपा ने इस कदम को राज्य सरकार द्वारा उन पर थोपे गए राजनीतिक निर्णयों से मुक्त विश्वविद्यालयों की स्वायत्त प्रकृति को सुरक्षित करने के लिए सही दिशा में एक कदम बताया है।
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