नई दिल्ली । बजट 2023-24 में पूंजीगत खर्च में वृद्धि, हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और वित्तीय बाजार को मजबूत बनाने जैसे उपायों से देश में नौकरियां बढ़ेंगी। आर्थिक वृद्धि को भी रफ्तार मिलेगी। वित्त मंत्रालय ने गुरुवार को मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा कि मौद्रिक नीति सख्त किए जाने से वैश्विक मांग पर विपरीत असर दिखने लगा है। यही वजह है कि चालू वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही के निर्यात, जीएसटी संग्रह व पीएमआई जैसे महत्वपूर्ण आंकड़े नरमी का संकेत दे रहे हैं। यह स्थिति 2023 में भी जारी रह सकती है क्योंकि विभिन्न एजेंसियों ने वैश्विक आर्थिक वृद्धि में गिरावट की आशंका जताई है।
समीक्षा के मुताबिक, मौद्रिक नीति सख्त करने से उत्पन्न प्रभाव के अलावा कुछ देशों में महामारी का असर बने रहने और यूरोप में तनाव से वैश्विक विकास दर पर विपरीत असर पड़ सकता है। वैश्विक उत्पादन में नरमी के अनुमान की आशंका के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक ने 2023 में भारत के तीव्र आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने वाली जीडीपी बने रहने की उम्मीद जताई है। इसके अलावा, समग्र वृहत आर्थिक स्थिरता की वजह से 2022-23 की तरह भारत आने वाले वित्त वर्ष का सामना पूरे भरोसे से करने को तैयार है। इसके अलावा, देश वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और आर्थिक जोखिमों को लेकर पूरी तरह सतर्क भी है। आर्थिक समीक्षा में 2023-24 में विकास दर 6.5% रहने का अनुमान जताया गया है। इसके ऊपर जाने की तुलना में नीचे जाने का जोखिम अधिक है।

महंगाई व कैड के मोर्चे पर कम रहेगा जोखिम
देश में 2023-24 में महंगाई का जोखिम कम रहने की उम्मीद है। हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक तनाव और उसके कारण आपूर्ति बाधित होने से यह जोखिम खत्म नहीं हुआ है। इससे 2022 में महंगाई दर ऊंची रही। यह स्थिति अब भी मौजूद है। चालू खाता घाटे (कैड) समेत बाहरी घाटों को लेकर 2023-24 में स्थिति कम चुनौतीपूर्ण रह सकती है। लेकिन, वैश्विक व्यापार व पूंजी प्रवाह के रुझान पर ध्यान देने की जरूरत है।
कर स्लैब में संशोधन से मांग बढ़ाने की कोशिश
बजट में खर्च और मांग बढ़ाने के उपायों की भी घोषणा की गई है। इनमें नई कर व्यवस्था में छूट सीमा को 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करना शामिल है। आसान केवाईसी, डिजिलॉकर सेवाओं का विस्तार और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने से वित्तीय बाजारों को मजबूती मिलेगी।