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वनांचल के 2030 छोटे-बड़े नालों में लगभग 05 लाख 86 हजार हेक्टेयर भूमि होगी उपचारित: वन मंत्री अकबर

by Bhupendra Sahu

रायपुर । राज्य सरकार द्वारा सुराजी गांव योजना के तहत चलाए जा रहे महत्वपूर्ण ‘‘नरवा विकास कार्यक्रम’’ के अंतर्गत कैम्पा की वार्षिक कार्ययोजना 2020-21 के पार्ट-1 तथा पार्ट-2 में 388 करोड़ रूपए से अधिक की राशि की स्वीकृति दी गई है। इसमें 03 हजार 263 किलोमीटर लंबाई वाले 2030 छोटे-बड़े नालों के 5.86 लाख हेक्टेयर जल ग्रहण क्षेत्र में 44 लाख 34 हजार भू-जल संरक्षण संबंधी संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर ने बताया कि इनके निर्माण से वनांचल के लगभग 05 लाख 86 हजार हेक्टेयर भूमि उपचारित होगी।

राज्य में कैम्पा (छत्तीसगढ़ प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण) के अंतर्गत वर्ष 2020-21 पार्ट-1 के तहत 01 हजार 92 छोटे-बड़े नालों में 20 लाख 76 हजार 484 भू-जल संरक्षण संबंधी संरचनाओं के निर्माण के लिए लगभग 210 करोड़ रूपए की राशि की स्वीकृति दी गई है। इनमें से अब तक 139 करोड़ रूपए की राशि व्यय कर 18 लाख 60 हजार संरचनाओं का निर्माण पूर्ण कर लिया गया है। इनके निर्माण से वनांचल के 03 लाख 60 हजार 777 हेक्टेयर भूमि उपचारित होगी। इसी तरह वर्ष 2020-21 पार्ट-2 के तहत 938 छोटे-बड़े नालों में 23 लाख 58 हजार 273 भू-जल संरक्षण संबंधी संरचनाओं के निर्माण के लिए लगभग 178 करोड़ रूपए की राशि की स्वीकृति दी गई है। इनमें से अब तक 45 करोड़ रूपए की राशि व्यय कर 10 लाख 41 हजार संरचनाओं का निर्माण पूर्ण कर लिया गया है। इनके निर्माण से वनांचल के 02 लाख 24 हजार 838 हेक्टेयर भूमि उपचारित होगी।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की विशेष पहल और वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में राज्य के वन क्षेत्रों में भू-जल संरक्षण तथा संवर्धन के लिए बड़े तादाद में जल स्रोतों, नदी-नालों और तालाबों को पुनर्जीवित करने का कार्य लिया गया है। इसके लिए वन मंत्री श्री अकबर ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य प्रतिकरात्मक वनरोपण, निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा) मद से बनने वाली इन जल संग्रहण संरचनाओं से वनांचल में रहने वाले लोगों और वन्य प्राणियों के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। साथ ही नाले में पानी का भराव रहने से आस-पास की भूमि में नमी बनी रहेगी। इससे खेती-किसानी में सुविधा के साथ-साथ आय के स्रोत और हरियाली में भी वृद्धि होगी।

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