Home » इस्पात मंत्रालय से पहले गठन हुआ था सरकारी कंपनी भिलाई स्टील प्रोजेक्ट का

2.5 प्रतिशत ब्याज पर भारत को वित्तीय सहायता दी थी सोवियत संघ ने
आज ही के दिन 1955 में भारत व सोवियत संघ के बीच हुआ था ऐतिहासिक समझौता इसके आधार पर बना स्वतंत्र भारत का पहला आधुनिक तीर्थ भिलाई स्टील प्लांट

मुहम्मद जाकिर हुसैन

भिलाई।  2 फरवरी 1955 को नई दिल्ली में भारत और तत्कालीन सोवियत संघ सरकार के बीच ऐतिहासिक साझा सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके आधार पर भिलाई स्टील प्लांट साकार हो पाया। तब भिलाई का केंद्र सरकार के लिए क्या महत्व था, इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि इस करार पर हस्ताक्षर के बाद सबसे पहले भिलाई स्टील प्रोजेक्ट नाम से एक सरकारी कंपनी का गठन किया गया और फिर इसके बाद केंद्र सरकार ने इस्पात मंत्रालय का गठन किया था।

भारत-सोवियत संघ के आर्थिक संबंधों पर शोध कर रहे जर्मनी के एक शोधकर्ता मिर्को श्वागमैन ने इस ऐतिहासिक अवसर पर ब्रिटेन के अखबार लंदन टाइम्स के 3 फरवरी के अंक में प्रकाशित खबर की प्रति उपलब्ध कराई है। जिसे एक ब्रिटिश-जर्मन कंपनी “क्रुप्प” ने टाइप करवा कर 10 फरवरी 1955 को लंदन से जर्मनी भेजा था। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस अनुबंध पर भारत में सोवियत संघ के राजदूत एमए मेन्शिकोव और भारत सरकार के उत्पादन मंत्रालय के सचिव एसएस खेरा (आईसीएस) ने हस्ताक्षर किए थे। जिसमें प्रारंभिक 10 लाख टन सालाना इंगट उत्पादन क्षमता के लिए तीन कोक ओवन बैटरी, दो ब्लास्ट फर्नेस, दो ओपन हर्थ फर्नेस दिसंबर 1958 तक तैयार कर लिए जाएंगे।
इनकी निर्माण लागत को लेकर शुरूआती अंदाज लगाया गया कि सिंटरिंग प्लांट सहित समूचे प्लांट के लिए मशीनरी व अन्य उपकरण सोवियत संघ द्वारा बाल्टिक बंदरगाह से भेजे जाएंगे, जिनकी अनुमानित लागत 43 करोड़ 33 लाख रुपए होगी। इसके लिए सोवियत संघ इस राशि का भुगतान 12 समान किस्तों में 2.5 प्रतिशत ब्याज की दर से भारत सरकार को रूपए में कर्ज के रूप में करेगा। इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक में एक खाता खोला जाएगा। जिससे भारतीय पक्ष स्टील प्लांट के लिए सामान की खरीददारी करेगा। इस पूरी परियोजना की अंतिम प्रोजेक्ट रिपोर्ट 9 महीने के भीतर बना ली जाएगी। इसके आधार पर भारतीय पक्ष को यह समझौता रद्द करने अथवा इसे जारी रखने का पूरा अधिकार होगा।

बरसों की कोशिश कामयाब
हुई थी 1955 में

मध्य भारत में स्टील प्लांट के लिए यूं तो कोशिश 19 वीं सदी के आखिरी दशक और 20 वीं सदी की शुरूआत से जारी थी। जिसमें 1887 में प्रख्यात भूगर्भशास्त्री परमार्थनाथ बोस द्वारा रावघाट और दल्ली राजहरा के लौह अयस्क भंडारों की खोज के बाद 1905 तक टाटा की ओर से किए गए प्रयास शामिल है। लेकिन तब तक भिलाई को अंतिम रूप से तय नहीं किया गया था। बाद के दौर में मध्यभारत के बड़े कांग्रेसी नेता (कालांतर में सीपीएंड बरार और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री) रविशंकर शुक्ल के परिवार से भिलाई में निजी स्टील प्लांट लगाने कोशिश 1928 के दौर में हुई थी। हालांकि वह कोशिश कामयाब नहीं हुई। लेकिन इसी आधार पर बाद में रविशंकर शुक्ल ने अपने विश्वस्त आईसीएस आफिसर श्रीनाथ मेहता से पूरी दावा रिपोर्ट तैयार करवाई और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समक्ष दृढ़ता से भिलाई का पक्ष रखा। हालांकि तब तक भिलाई अंतिम न हो कर विकल्प ही था क्योंकि तब तक राजनीतिक लाभ लेने दूसरे क्षेत्रों से भी स्टील प्लांट की मांग उठ रही थी। इस दिशा में भारत सरकार ने अमेरिका के आर्थर जी. मैक की एंड संस कार्पोरेशन को जुलाई-अगस्त 1948 मेें सलाहकार नियुक्त किया था। जिसने बिलासपुर जिले में बिल्हा, रायपुर जिले में तिल्दा और दुर्ग जिले में तांदुला के आस-पास नए स्टील प्लांट की स्थापना की सिफारिश की।

जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना पहली बार जारी हुई थी 1949 में

1948 में मैक की एंड संस कार्पोरेशन की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार ने मौजूदा भिलाई के क्षेत्र में स्टील प्लांट स्थापित करने संभावनाएं तलाशने गतिविधि शुरू कर दी। जिसमें भिलाई के आसपास 11 गांव की जमीन अधिग्रहण की पहली अधिसूचना 16 मई 1949 को जारी हुई थी। बदलते घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नेहरू की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की उत्पादन कमेटी ने 10 सितंबर 1954 की बैठक में देश में स्टील प्लांट की स्थापना में सोवियत संघ से सहयोग लेने का निर्णय लिया। जिसका औपचारिक प्रतिवेदन 10 नवंबर 1954 को तत्कालीन सोवियत संघ सरकार को भेजा गया। सोवियत संघ सरकार ने तत्परता दिखाई और नए स्टील प्लांट के स्थल चयन व अन्य सर्वेक्षण के लिए अपनी टीम अगले 10 दिन के भीतर 20 नवंबर 1954 को नई दिल्ली भेज दी। इसके बाद वह ऐतिहासिक दिन आया जब 2 फरवरी 1955 को 10 लाख टन सालाना हॉट मेटल उत्पादन के लिए संयंत्र लगाने सोवियत संघ और भारत सरकार ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के ठीक दूसरे दिन 3 फरवरी 1955 को तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने राज्यपाल की ओर से 47 गांवों के भू-अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी कर दी। वहीं केंद्र सरकार की ओर से 7 फरवरी 1955 को अंतिम रूप से भिलाई की औपचारिक घोषणा की गई। फिर तीन माह बाद 15 मई 1955 को भिलाई स्टील प्रोजेक्ट नाम से नई सार्वजनिक कंपनी का गठन किया गया और इसके सप्ताह भर बाद 22 मई 1955 को केंद्र सरकार ने इस्पात मंत्रालय का गठन किया। इसके बाद श्रीनाथ मेहता को प्रोजेक्ट का पहला महाप्रबंधक नियुक्त किया गया।

Share with your Friends

Related Articles

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More