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डेढ़ दशक बाद जगरगुंडा में लौटी रौनक… रामलीला के साथ पहली बार हुआ रास गरबा का भव्य आयोजन

by Bhupendra Sahu

जहाँ कभी गूंजती थी बंदूकों की आवाज़, अब सुनाई देती है ढोल-नगाड़ों और आरती की गूँज
रामलीला के साथ पहली बार हुआ रास गरबा का भव्य आयोजन

रायपुर कभी नक्सल प्रभाव के कारण वीरान पड़ा जगरगुंडा अब फिर से जीवन और उल्लास से भर उठा है। डेढ़ दशक पहले यहां शाम ढलते ही सन्नाटा छा जाता था वहीं अब जगरगुंडा में बदलाव की बयार दिखने लगी है। जहां गोली बारूद की भयानक आवाज से लोग दहशत में आ जाते थे अब नवरात्रि में रास-गरबा की गूंज सुनाई दे रही है।

2006 के बाद सलवा जुडूम अभियान के चलते यहां का सामाजिक जीवन लगभग ठहर सा गया था। न तो सड़कें थीं, न बिजली, न स्वास्थ्य सेवाएँ। चारों ओर सुरक्षा घेरे और कंटीले तारों से घिरा यह इलाका एक समय “प्रवेश वर्जित क्षेत्र” माना जाता था। लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। शासन-प्रशासन की निरंतर कोशिशों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की सक्रियता से जगरगुंडा में फिर से रौनक लौट आई है। सड़के, पुल-पुलिया और अन्य बुनियादी सुविधाएँ अब इस क्षेत्र को तीन जिलों से जोड़ रही हैं।

नवरात्र पर्व बना पुनर्जागरण का प्रतीक

इस वर्ष जगरगुंडा में डेढ़ दशक बाद नवरात्र का भव्य आयोजन किया गया। पूरे ग्राम ने मिलकर माता की प्रतिमा स्थापित की, पूजा-अर्चना और भंडारे का आयोजन हुआ। ग्राम पंचायत की युवा सरपंच नित्या कोसमा ने पूरे आयोजन का नेतृत्व किया और ग्रामीणों के साथ प्रत्येक कार्यक्रम में भाग लिया। पूरे नवरात्र के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों, भक्ति गीतों और सामाजिक मेलजोल का माहौल रहा। ग्रामीणों ने कहा कि वर्षों बाद जगरगुंडा में ऐसा उल्लास देखा है मानो भय के अंधेरे को उजाले की रोशनी ने मिटा दिया हो।

पहली बार जगरगुंडा में रास-गरबा का आयोजन

इतिहास में पहली बार जगरगुंडा में रास गरबा का आयोजन किया गया यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक कार्यक्रम था बल्कि जगरगुंडा के सामाजिक पुनर्जागरण का प्रतीक बना। सरपंच नित्या कोसमा ने स्वयं महिलाओं और छात्राओं को गरबा का प्रशिक्षण दिया और देर रात तक चले इस आयोजन में सबको शामिल किया।

अब जगरगुंडा में डर नहीं, विकास की गूंज है

आज जगरगुंडा में नई सड़कें, पुल-पुलिया और सरकारी योजनाओं की पहुंच से विकास की नई सुबह हो चुकी है। अब यह क्षेत्र तीन जिलों को जोड़ने वाला महत्त्वपूर्ण संपर्क बिंदु बन रही है। स्कूलों में बच्चों की आवाज़ें गूंजती हैं, बिजली की रौशनी से घर जगमगाते हैं, और लोग फिर से तीज-त्योहार मनाने लगे हैं।
जगरगुंडा पंचायत की महिलाओं ने बताया कि पहले जहां शाम होते ही घरों के दरवाजे बंद हो जाते थे, वहीं अब रात में संगीत और ताल की गूंज सुनाई देती है। ग्रामीणों ने सरपंच नित्या कोसमा का आभार जताते हुए अगले वर्ष इसे और भी भव्य रूप में मनाने की बात कही।

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