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चक्का फेंक एथलीट योगेश कथुनिया ने भारत को दिलाया आठवां पदक

by Bhupendra Sahu

पेरिस। भारत के योगेश कथुनिया ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पेरिस पैरालंपिक में पुरुषों के एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर के सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ रजत पदक जीता। कथुनिया ने इससे पहले टोक्यो पैरालंपिक में भी इस स्पर्धा का रजत पदक जीता था। इसी तरह भारत अब तक इन खेलों में आठ पदक जीत चुका है जिसमें एक स्वर्ण भी शामिल है। इस 29 साल के खिलाड़ी ने अपने पहले प्रयास में मौजूदा सत्र का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 42.22 मीटर की दूरी तय की। ब्राजील के क्लॉडनी बतिस्ता डॉस सैंटोस ने अपने पांचवें प्रयास में 46.86 मीटर की दूरी के साथ इन खेलों का नया रिकॉर्ड कायम करते हुए पैरालंपिक में स्वर्ण पदक की हैट्रिक पूरी की। ग्रीस के कंन्स्टेंटिनो तजौनिस ने 41.32 मीटर के प्रयास के साथ कांस्य पदक जीता। एफ 56 वर्ग में भाग लेने वाले वाले खिलाड़ी बैठ कर प्रतिस्पर्धा करते है। इस वर्ग में ऐसे खिलाड़ी होते है जिनकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त होती है और शरीर के निचले हिस्से में विकार होता है।

रजत जीतने के बावजूद योगेश कथुनिया अपने प्रदर्शन से बहुत खुश नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कई प्रमुख टूर्नामेंटों में दूसरे स्थान की बाधा को पार नहीं कर पा रहे हैं। कथुनिया ने मैच के बाद कहा, प्रतियोगिता ठीक रही, मुझे रजत पदक मिला। मैं अब पदक का रंग बदलने के लिए कड़ी मेहनत करूंगा। पिछले कुछ समय से मैं केवल रजत जीत रहा हूं, चाहे वह टोक्यो पैरालंपिक हो या आज, विश्व चैंपियनशिप या एशियाई खेल..हर जगह मैं रजत जीत रहा हूं। गाड़ी अटक गई है। मुझे लगता है कि मुझे और अधिक मेहनत करने की जरूरत है। अब मुझे स्वर्ण पदक चाहिए।
कथुनिया नौ साल की उम्र में गुइलेन-बैरी सिंड्रोम से ग्रसित हो गए थे। यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें शरीर के अंगों में सुन्नता, झनझनाहट के साथ मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है और बाद में यह पैरालिसिस का कारण बनता है। वह बचपन में व्हीलचेयर की मदद से चलते थे लेकिन अपनी मां मीना देवी की मदद से वह बाधाओं पर काबू पाने में सफल रहे। उनकी मां ने फिजियोथेरेपी सीखी ताकि वह अपने बेटे को फिर से चलने में मदद कर सके। कथुनिया के पिता भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं। कथुनिया ने दिल्ली के प्रतिष्ठित किरोड़ीमल कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक किया है।
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